Rashtriy Ekta ke Pratik – Tiranga

राष्ट्रीय झंडा : तिरंगा
हमारा राष्ट्रीय तिरंगा झंडा राष्ट्रीय एकता, अखंडता और गौरव का
प्रतीक है। भारत की जनता इस झंडे को जान से ज्यादा प्यार करती है। इसके
सम्मान और गौरव की रक्षा के लिए वह हर कुर्बानी कर सकती है। इस झंडे का
इतिहास त्याग, बलिदान, उत्साह और उत्सर्ग का इतिहास है। पुरा
झंडे के लिए प्राचीन साहित्य में ध्वज या पताका शब्द का प्रयोग मिलता
है। राजाओं के सेना-चिह्न के रूप में जो दंड होता था, उसी का नाम ध्वज था।
ध्वज दो प्रकार के होते थे-झंडेवाले सतपाक और बगैर झंडेवाले।
ध्वज का दंड वकुल, शाल, पलाश, चंपक, कदंब और निंब आदि का
होता था। जया, विजया, भीमा, चपला, वैजयंतिका, दीर्घा, विशाला और
लीला- ये 8 प्रकार के ध्वज होते थे। इनमें जया नामक ध्वज का दंड पाँच हाथ
और विजयादि ध्वज का दंड क्रमशः एक-एक हाथ बढ़ता जाता था। सभी
पताकाओं का रंग लाल, सफेद, सुनहरा, पीला, नीला और काला हो सकता
था। जिस पताका में गजादि अंकित रहता था, उसे जयंती कहा जाता था। इस
प्रकार की पताका सब प्रकार के सुखों को देनेवाली समझी जाती थी। गजादि
शब्द से सिंह और हाथी का बोध होता था। हंसादि अंकित पताका को
अष्टमंगला कहते थे। हंसादि शब्द से हंस, केकी और तोता समझा जाता था।
पताका के ऊपरी भाग पर सोने, चाँदी और ताँबे अथवा लाल धातु का
घड़ा बना होता था। उस पर रत्नादि जड़े हुए होते थे। ऐसी पताका को
सतपाक ध्वज कहते थे। निष्पताक ध्वज के चिह्न पहले के समान होते थे।
दंड, पद्म, कुंभविहग और मणि ये चार पदार्थ जिस दंड में जुड़े रहते थे, उसे निष्पताक ध्वज कहते थे। ये भी राजाओं के लिए मंगलजनक माने जाते थे।

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झंडे का अर्थ है-कपड़े का टुकड़ा जो तिकोने या चौकोर आकार में कटा
रहता है। इसका सिरा लकड़ी के डंडे में लगाकर फहराया जाता है। कपड़े का
रंग भिन्न-भिन्न तरह का हो सकता है। इस पर अनेक प्रकार की रेखाएँ व
चिह्न आदि बने होते हैं।
भारतीय राष्ट्रीय झंडे की कहानी देश के राजनीतिक इतिहास के साथ
जुड़ी हुई है। भक्तों और पजारियों के लिए जो महत्त्व मूर्ति का होता है, वही
महत्त्व स्वाधीनता संग्राम के सेनातियों तथा देशभक्तों के लिए राष्ट्रीय झंडे का
होता है।
भारत में पहला झंडा 7 अगस्त, 1906 को पारसी बागान स्क्वायर,
कलकत्ता में फहराया गया था। इस झंडे में लाल, पीला और हरा-तीन रंग थे।
सबसे ऊपर लाल रंग की पट्टी पर आठ सफेद कमल थे। बीच की पट्टी पर
‘वंदे मातरम्’ शब्द नीले रंग में लिखा था। तीसरी हरी पट्टी पर बाईं ओर
सफेद सूर्य तथा दाहिनी ओर सफेद अर्द्धचंद्र तथा तारे का चिह्न था।
दूसरा झंडा पेरिस में सन् 1907 में श्रीमती कामा और उनके साथी, देश
से निकाले गए, क्रांतिकारियों द्वारा फहराया गया था। यह झंडा भी पहले की
तरह ही था। फर्क केवल इतना था कि ऊपर की लाल पट्टी पर एक कमल
और सात तारों के चिह्न थे। यह झंडा बर्लिन की सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भी
फहराया गया था।

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तीसरी बार झंडा फहराने के समय तक भारतीय राजनीति नया मोड़ ले
चकी थी। होमरूल, आंदोलन के समय डॉ. ऐनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक
ने सन् 1917 में इस झंडे को फहराया था। इस झंडे में पाँच लाल और चार हरे
रंग की पट्टियाँ थीं और सबसे ऊपर बाईं ओर झंडे के एक चौथाई भाग में
यूनियन जैक (ब्रिटिश राजा का चिह्न) था। झंडे के बीच में सात तारे थे। एक
ही झंडे में यूनियन जैक और भारतीय झंडे का होना डोमिनियन स्टेट्स
(स्वशासित राज्य) का प्रतीक था।सन् 1921 में महात्मा गांधी का नेतृत्व सामने आया। अखिल भारतीय
कांग्रेस समिति के विजयवाड़ा अधिवेशन के समय आंध्र प्रदेश का एक युवक
एक झंडा बनाकर गांधीजी के सामने आया। इस झंडे में लाल और हरा-दो
रंग थे, जो दो समुदायों के प्रतीक थे। शेष समुदाय के प्रतीक रूप में गांधीजी ने
उसमें एक सफेद रंग जोड़ने का सुझाव दिया और उसके साथ चरखे को भी, जो
प्रगति का प्रतीक है। महात्मा गांधीजी के अनुसार चरखा भारत के सबसे
गरीब समुदाय का प्रतीक है।
महात्मा गांधी का कहना था कि बेकारी और बेरोजगारी की समस्या
व्यापक रूप से फैली है और भारत में करोड़ों व्यक्तियों की आय कुछ आने से
अधिक नहीं है। उनका कहना था कि ऐसे व्यक्ति यदि चरखे का सहारा लें तो
उनकी आमदनी बढ़ सकती है। यहाँ तक कि जो कृषि अथवा अन्य रोजगार में
लगे हैं, उन्हें भी अवकाश का काफी समय मिलता है। ऐसे अवकाश के समय
में वे चरखा चलाकर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं। महात्मा गांधी
को चरखे में अटूट विश्वास था। फलतः चरखा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का
में प्रतीक बना।

5 वी प.अभ्यास 2*
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5 वी गणित
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5 वी मराठी
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5 वी english
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सन् 1931 में करांची में कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर राष्ट्रीय झंडे
को विधिवत् मंजूरी मिली। 22 जुलाई, 1947 को भारत का राष्ट्रीय झंडा तिरंगा घोषित किया गया; पर 14
अगस्त, 1947 ई. को संविधान सभा की
अर्द्धरात्रि की बैठक में यह राष्ट्र को सौंपा गया। रंग वही रहे; किंतु चरखे के
स्थान पर एक चक्र लिया गया। सफेद रंग की बीचवाली पट्टी में एक गोलाकार
अशोक चक्र अथवा धर्मचक्र है। सारनाथ के सिंह स्तंभ के पत्थर में खुदे चक्र
का चित्र इसमें दिया गया है। इसका घेरा उस प्रस्तर की चौड़ाई के बराबर है।
इसमें 24 आतें अथवा कमानियाँ हैं, जो वर्ष के 24 पक्षों अथवा पखवारों की
प्रतीक हैं। यह चक्र गतिशीलता का प्रतीक है। इससे हमें कर्तव्य पालन एवं
प्रगति की प्रेरणा मिलती है।
( हमारा राष्ट्रीय झंडा आयताकार है। इसकी लंबाई-चौड़ाई का अनुपात
3 और 2 है। चौड़ाई की तरफ से तीन बराबर भाग किए गए हैं, जो तीन
विभिन्न रंगों के कारण पट्टीनुमा दिखाई देते हैं।
सबसे ऊपर की पट्टी केसरिया रंग की है। यह रंग साहस, त्याग और
बलिदान का प्रतीक है। यह रंग हमें इस बात की प्रेरणा देता है कि हम भी अपने
में साहस, त्याग और बलिदान की भावना लाएँ। बीच की पट्टी सफेद रंग की
है। यह रंग निष्काम सत्य और पवित्रता का सूचक है। यह रंग हमें सच बोलने,
सरल स्वभाव और अहिंसावादी होने की प्रेरणा देता है। सबसे नीचे की पट्टी
गहरे हरे रंग की है। यह संपन्नता और जीवन का प्रतीक है। यह हमें बताता है
कि हमें खेती और उद्योग-धंधों का विकास कर देश से गरीबी को भगाना है।
इन तीनों रंगों से बना होने के कारण इसे तिरंगा झंडा कहा जाता है।।
इन तीनों रंगों की व्याख्या दूसरे प्रकार से भी की जाती है-‘केसरिया रंग
हिंदुओं का प्रतीक है, हरा मुसलमानों का तथा सफेद दोनों संप्रदायों के बीच
एकता का।’ अब हाल में इस की व्याख्या इस प्रकार की जा रही है-केसरिया
ईमानदारी और पवित्रता का, हरा साहस और व्यक्ति की स्वतंत्रता का तथा
सफेद सत्य और शांति का प्रतीक है।
झंडे के फहराए जाने, उतारने, झुकाने और उसे सलामी देने के संबंध में
भारत सरकार ने कुछ नियम बना दिए हैं, जैसे किसी व्यक्ति अथवा वस्तु के
सम्मान में राष्ट्रीय झंडे को झुकाया नहीं जा सकता। व्यक्ति या वस्तु के सम्मान
के लिए आवश्यक रेजिमेंट का झंडा, राज्य का झंडा, संगठन का अथवा
संस्थान का झंडा फहराया जाना चाहिए। कोई और झंडा इसके ऊपर अथवा
दाईं ओर स्थान नहीं पा सकता। यदि एक ही पंक्ति में अनेक झंडे फहराए जाने
हों तो वे सब राष्ट्रीय झंडे के बाईं ओर ही रहेंगे। जब अन्य झंडों को ऊँचा
फहराया जाना हो तब राष्ट्रीय झंडा सबसे ऊपर रहना चाहिए।
जब एक ध्वज दंड पर कई झंडे फहराए जाने हों, तब भी राष्ट्रीय झंडा
सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। झंडे को उलटाकर अथवा झुकी हुई दशा में
कभी न ले जाया जाए, बल्कि ऊँचा या खुला हुआ ले जाया जाए। जुलूस में यह,
झंडा ले जानेवाले के बाएँ कंधे पर और सबसे आगे रहना चाहिए। यदि किसी
झंडे को सीधा या किसी खिड़की, छज्जे अथवा मकान के मुख्य भाग से झुकी
हुई स्थिति में फहराना हो तो केसरिया भाग ऊपर की ओर रहना चाहिए।
जब एक साथ कई झंडे फहराने हों तो राष्ट्रीय झंडे को दूसरे झंडों के साथ
उठाया जाए। इसे सबसे पहले ऊपर ले जाया जाए और नीचे उतारते समय
सबसे बाद में नीचे उतारा जाए।
सामान्यतः राष्ट्रीय झंडा समस्त सरकारी भवनों जैसे उच्च न्यायालयों,
सचिवालयों, आयुक्तों के कार्यालयों, जेलों और जिला बोर्ड तथा
नगरपालिकाओं जैसे सरकारी भवनों पर ही फहराया जाना चाहिए।
स्वतंत्रता-दिवस, गणतंत्र दिवस, महात्मा गांधी का जन्म-दिवस,
राष्ट्रीय सप्ताह तथा ऐसे अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय झंडा
फहरा सकता है।
किसी बैठक आदि में राष्ट्रीय झंडा अध्यक्ष के आसन के पीछे; किंतु उनके
माथे से ऊँचा रहे। झंडे पर कोई चीज नहीं लिखी जानी चाहिए। जब झंडा
उपयोग के लायक न हो तो उसे रद्दी की टोकरी में अथवा गलत स्थान पर
नहीं फेंकना चाहिए। इसका उपयोग केवल झंडे के रूप में ही किया जाना
चाहिए।
केंद्रीय और राज्य सरकारों के मंत्री और अध्यक्ष (स्पीकर) अपने निवास
पर झंडा फहराने के अधिकारी हैं। केंद्रीय सरकार के राज्य मंत्री, क्षेत्रीय
आयुक्त, उपायुक्त और राज्यों के राज्यपाल अपने निवास भवनों पर झंडा
फहरा सकते हैं।
मंत्रिमंडल के मंत्री, राज्यमंत्री, मुख्य आयुक्त, क्षेत्रीय आयुक्त एवं
विदेशों में नियुक्त भारत के प्रतिनिधि अपनी गाड़ियों पर राष्ट्रीय झंडा लगा
सकते हैं।
महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व के निधन पर राष्ट्रीय झंडे को आधा झुकाने का
नियम है। ऐसे अवसरों के लिए विशेष आदेश आवश्यक होता है।
झंडा राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। यह देशवासियों के हृदय में राष्ट्र-प्रेम
की भावना जगाया करता है तथा मातृभूमि की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर
कर देने का संदेश देता है। राष्ट्रीय झंडे का सम्मान राष्ट्र का सम्मान है।
प्रत्येक देश के अपने-अपने झंडे हैं, जो उनकी स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता और
प्रभुता एवं एकता के प्रतीक हैं।

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