Hamare Aadarsh – Guru Nanak

गुरु नानक
भारत अवतारी-पुरुषों की जन्मभूमि है । जब-जब धर्म और समाज में
बुराइयाँ आई तब-तब किसी न किसी समाज-सुधारक और धर्म-सुधाकर ने जन्म
लिया । ठीक ऐसे ही समय गुरु नानक के सिक्ख-धर्म की नींव रखी । इस तरह
गुरुनानकजी सिक्खों के प्रथम गुरु माने जाते हैं ।


गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक मास की पूर्णिमा को सन् १४६८ ई. में
तलवंडी नामक ग्राम में उनके जन्मस्थान को ननकाना साहब भी कहते
है । यह स्थान पाकिस्तान में लाहौर से लगभग २२ किलोमीटर की दूरी पर है ।
इनके पिता श्री कालू राम खत्री पटवारी थे । उनकी माता का नाम तृप्ता था ।


नानक जी को बचपन से ही पढाई-लिखाई में रुचि नहीं थी और न ही उनका
मन किसी काम-काज में लगता था । उन्हें प्रभु-भक्ति और साधु सेवा ही अच्छी
लगती थी । एक बार उनके पिता ने उन्हें कुछ धन देकर व्यापार करने के लिए
भेजा । उन्होंने वह धन साधुओं को भोजन कराने में खर्च कर दिया और घर आकर
कह दिया कि वह सच्चा सौदा कर आये है। फिर उनके बहनोई ने उन्हें एक
सरकारी गोदाम में नौकरी दिला दी । वहाँ भी वे सरकारी अनाज साधुओं पर भेंट
करते रहे । उनकी शिकायत मिलने पर जब सरकारी जाँच हुई तो गोदाम का माल
पूरा निकला।


इस तरह के जब कई चमत्कार हुए तब लोग उन्हें श्रध्दा भाव से देखने
लगे । गुरु नानक का विवाह सुलक्षणा देवी के साथ हुआ । उनके दो पुत्र श्रीचंद
और लख्मी चन्द हुए । घर-परिवार उन्हें प्रभु-भक्ति और साधु सेवा के मार्ग से न
रोक सका । उन्होंने घर बार छोडकर धर्म प्रचार का मार्ग अपना लिया । धर्म प्रचार
के लिए उन्होंने सारे भारत का भ्रमण किया और एक बार वे अपने दो प्रिय शिष्यों
के साथ मुसलमानों के तीर्थस्थान मक्का भी गए ।सन् १५३८ ई.में ६९ वर्ष की
आयुमें उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया ।


गुरु नानक देव के उपदेश सिक्खों के धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहब में मिलते
हैं । उनके धर्म का सार है ईश्वर एक है । गुरु से ज्ञान मिलने पर भक्त ईश्वर को
पा सकता है । वे मूर्ति-पूजा पर विश्वास नहीं रखते थे और न ही वे जात-पात
को मानते थे। वे सब को समान रुप से ईश्वर की सन्तान मानते थे।

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