सन्त कबीर
भारत अवतारी महापुरुषों की जन्मभूमि है । राम,कृष्ण,बुध्द,महावीर स्वामी,गुरु-
नानक,स्वामी दयानन्द ने इस पवित्र भूमि पर जन्म लिया । आज से लगभग पाँच
वर्ष पहले बनारस में लहरतारा नामक तालाब पर एक जुलाहा-दम्पत्ति को एक
बालक मिला । ये जुलाहा दम्पत्ति नीरु और नीमा थे । उनकी कोई सन्तान नहीं
थी। वे उस अनाथ बालक को घर के लाए । उन्होंने उसका नाम कबीर रखा।
बचपन से ही कबीर की पढाई-लिखाई में कोई रुचि नहीं थी । उनका
अधिकांश समय प्रभु-भजन और साधु-संगति में व्यतीत होता । माँ-बाप उन्हें कपडा
बुनना सिखाया करते । उन का विवाह लोई नामक कन्या से कर दिया गया जिससे
उन के यहाँ कमाल नामक पुत्र और कमाली नामक पुत्री हुई । उनकी सारी कमाई
साधु-सेवा में खर्च हो जाती । उन्हें पत्नी का प्यार और सन्तान का मोह नहीं बाँध
सका।
बडे होकर उन्होंने गुरु रामानन्द को अपना गुरु बनाया । गुरु से ज्ञान पाकर
उन्होंने लोगों में प्रभु-भक्ति का प्रचार करना आरम्भ कर दिया । उन का कहना था
कि ईश्वर एक है । वह मन्दिर-मस्जिद में नहीं रहता । वह तो हमारे मन में रहता
है । उनका विश्वास था कि हिन्दू-मुसलमान उसी एक ईश्वर की सन्तान है । सभी
मनुष्य एक है। कबीर अपने समय के प्रसिध्द समाज-सुधारक और धर्म-सुधारक थे । वे
अनपढ थे परन्तु फिर भी वे भक्त-कवि थे। कबीर के उपदेश उनकी साखियों में पाए
जाते हैं। उनकी मृत्यु मगहर मे हुई । आज उनके शिष्यों में लाखों-करोडों हिन्दू-
मे मुसलमान हैं पर कबीर तो न हिन्दू थे और न ही मुसलमान । वे तो सच्चे इंसान
थे।